पांचवीं बैताल कथा- सत्ता भ्रष्ट बनाती है!
अंधियारी रात थी। राजा ने श्मशान में प्रवेश किया। पेड़ पर लटकी लाश को उतारा, पीठ पर लादा और चल पड़ा। उसके चलते ही लाश में छिपा बैताल बोल पड़ा- "राजन, तुम प्रयास करते करते थक गए होंगे। तुम्हारी थकान कम करने के लिए एक कहानी सुनाता हूं-"जम्बूद्वीप पर और उसके ज्यादातर गणतंत्रों पर एक ही पार्टी का शासन चल रहा था। लगातार सत्ता में रहने से सरकार और पार्टी के लोगों में अहंकार आ गया था। भ्रष्टाचार और अराजकता बढ़ रही थी। नेता बढ़ रहे थे, कार्यकर्ताओं का अभाव था। ऐसे समय में कट्टरपंथी लोग धार्मिक भावनाएं उकसाकर एक गणतंत्र पर काबिज हो गए। उनकी पार्टी की पहली सरकार बनी। थोड़े दिनों तक सब ठीक चला। फिर पार्टी के लोगों की महत्वकांक्षाएं जोर मारने लगी। पार्टी में नेता पद को लेकर विद्रोह हो गया। अलग चाल, चेहरे की बात करने वालों का मुखौटा उघड़ गया। उनका अलग चरित्र पुरानी पार्टी से मेल खाने लगा। सरकारी पार्टी में दो गुट हो गए। लोगों ने 'हजूरिया-खजुरिया' का नाम दे दिया। सरकार डोल गई। जैसे-तैसे मेल बैठा। 'तेरी भी नहीं, मेरी भी नहीं' पर बात बनी और तीसरा आदमी नेता बन गया। नए नेता को मालूम था- बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा हैं। जितनी मलाई चाट सकता है-चाट ले। जल्दी से। उसे अपनी विधानसभा क्षेत्र में आए समुंद्री बीच पर पर्यटन की संभावनाएं दिखलाई दी। ख्यात धर्मगुरु, तथाकथित भगवान को भी वहां पहले संभावनाएं दिखलाई दी थी। वे भी वहां अपना धर्म केंद्र स्थापित करना चाहते थे। तब लोगों ने सामाजिक मूल्यों के हनन के नाम पर ऐसा होने नहीं दिया। नेताजी अपने काम में लग गए। शहर से दूर एक जगह चिन्हित की। कलेक्टर को निर्देशित किया। आदेश हो गए। वहां तक पहुंचने के लिए सड़क और अन्य सुविधाओं के लिए जंगल विभाग के अंतर्गत आने वाले पेड़ों को काट दिया गया। लाखों का खर्चा कर दिया। करोड़ों का होना बाकी था कि किसी ने शिकायत कर दी। समाचार पत्रों में खबर आई तो अलसाये हुए ऊपरी अधिकारियों ने रेंजर को निर्देश जारी किया- तुम्हारी तुम जानो। मामला तूल पकड़ रहा था। द्वीप का पर्यावरण विभाग हरकत में आता सा लग रहा था। मजबूरी में रेंजर को काम रुकवाना पड़ा। काम रुकते ही मुखिया का दबाव आया। कलेक्टर को मैदान में आना पड़ा। उसने फॉरेस्ट रेंजर को बुलाया, धमकाया। जमीन का अधिकरण न करने देने पर जेल में बंद करने की धमकी भी दे डाली। रेंजर ने अपने ऊपर वालों से मदद मांगी। ऊपर वालों ने हाथ खड़े कर दिए। आखिर उनका प्रमोशन ट्रांसफर सब मुखिया के हाथ में था। वे मुखिया के सामने पड़ना नहीं चाहते थे। उसे सरकारी भाषा में निर्देशित किया कि मुखिया नाराज न हो और नियमों के विरुद्ध कुछ हुआ और कार्रवाई करना पड़ी तो बलि का बकरा बनने को तैयार रहें। रेंजर की नींद, चैन सब उड़ गये। उसे अपनी नौकरी और परिवार की सुरक्षा खतरे में लगी। पर्यावरण और जंगल का मामला जम्बूद्वीप के अंतर्गत आता था। वहां की सरकार-गणतंत्र की इस सरकार को फूटी आंख भी नहीं देखती थी। गणतंत्र का कलेक्टर, साहब की आज्ञा पूरी करवाने के लिए नियमों को ताक में रखकर तलवार भांजने को तैयार था। दो पाटों के बीच में फंसा था रेंजर! वेतन पाता था गणतंत्र से और नियमों का पालन कराना थे द्वीप के।"- कह कर सस्पेंस बनाए रखते हुए बैताल ने कहानी समाप्त कर दी।
विवेकमेहता.stck.me
Write a comment ...